स्मृति -
स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है,इसका अर्थ पूर्व में घटित अनुभूतियों को मस्तिष्क में इकट्ठा कर रखने की क्षमता से है।
- स्मृति एक मनोशारीरिक प्रक्रिया भी है ।
- स्मृति नाड़ी तंत्र में बने हुये हुये स्मृति चिन्हों के कारण होती है।
- स्मृति में पुनरोत्पादन क्रिया पायी जाती है।
"स्मृति एक बार सीखी गयी प्रक्रिया का आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रत्यक्ष उपयोग है " - वुडवर्थ
स्मृति की अवस्थाएँ या तत्व -
1- कूट संकेतन (Coding)
2- संचयन (Retention)
3- पुनः प्राप्ति (Regenerating)
स्मृति के प्रकार । Smriti Ke Prakar । Kinds of Memories-
स्मृति को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बांटा गया है-
A-संवेदी स्मृति
B- लघुकालीन स्मृति
C- दीर्घकालीन स्मृति
अब विस्तारपूर्वक वर्णन -
A-संवेदी स्मृति - इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं -
- संवेदी स्मृति एक लघुतम अवधि वाली स्मृति है।
- इसमें सूचनाओं को व्यक्ति 1 सेकेंड या उससे कम रख पता है।
- इसमें उद्दीपक हट जाने के बाद भी थोड़े समय के लिए बना रहता है।
- इसे संवेदी संरचना या संवेदी रजिस्टर भी कहा जाता है।
- इसकी प्रकृति क्षणिक होती है।
- इसकी संचयन क्षमता लघुकालीन से बड़ी तथा दीर्घकालीन से छोटी होती है ।
- इसकी सूचनाए अपने मौलिक रूप में होती हैं।
संवेदी स्मृति के प्रकार -
1- प्रतिमा संबंधी स्मृति -
- यह एक दृष्टि संबंधी स्मृति है, जिसमें व्यक्ति के सामने से उद्दीपक हट जाने के बाद भी कुछ समय तक उसकी प्रतिमा या छवि उसके मस्तिष्क में बनी रहती है।
- प्रतिमा संबंधी स्मृति हमारे मस्तिष्क में 1/4 सेकेंड तक रहती है।
- इस पर अभ्यास का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
2-प्रतिध्वनिक स्मृति -
- यह एक श्रवण संबंधी स्मृति है।
- इसमें श्रवण उद्दीपक समाप्त हो जाने के बाद भी कुछ समय तक व्यक्ति उसको अनुभव करता है।
- इसकी सीमा 1/4 सेकेंड से लेकर अधिकतम10 सेकेंड तक की होती है।
- इस पर मनोवैज्ञानिक मासारो ने उल्लेखनीय कार्य किया है।
B- लघुकालीन स्मृति(प्राथमिक स्मृति/सक्रिय स्मृति/तात्कालिक स्मृति/चलन स्मृति/लघुकालीन संचयन/STM)-
- इसे प्राथमिक स्मृति नाम विलियम जोंस ने दिया।
- यह एक कमजोर स्मृति होती है।
- इसमें सीमित मात्रा में सूचनाओं का संचयन होता है।
- इसकी अवधि न्यूनतम 1 सेकेंड तथा अधिकतम 20-30 सेकंड की होती है।
- इसमें सूचनाओं का कूट संकेतन होता है।
- इसमें जब अर्थ के आधार पर संचयन किया जाता है तो इसे अर्थगत कूट संचयन कहते हैं।
- इसमें जब भौतिक रंग रूप के आधार पर संचयन किया जाता है तो दृष्टि कूट संचयन कहते हैं।
- इसमें सूचनाएँ बिना किसी हेर फेर के अर्थात अपने मूल रूप में संचित नहीं हो पाती हैं।
- सामान्य रूप से व्यक्ति इसमें 5-9 सूचनाएँ ही धारण कर सकता है। लेकिन चुकिंग(chucking) के द्वारा वह अधिक संख्या में भी सूचनाओं को धारण कर सकता है।
C- दीर्घकालीन स्मृति(Long Term Memory/स्थायी स्मृति/ गौण स्मृति/निष्क्रिय स्मृति/दीर्घकालीन संचयन/LTM)-
- ये स्मृति लंबे समय तक मस्तिष्क में रहती है।
- ये 20-30 सेकेंड से लेकर जीवन भर तक रहती है।
- इसकी पृकृति स्थायी होती है।
- इसमें भी सूचनाओं का कूट संकेतन किया जाता है।
- इसमें जोयगार्निक प्रभाव पाया जाता है।
- जोयगार्निक प्रभाव अर्थात पुरानी सूचनाओं का दुबारा याद आना(Recall) नयी सूचनाओं के दुबारा याद आने (Recall)से कम होता है।
दीर्घ कालीन स्मृति के प्रकार -
1-प्रासंगिक स्मृति (सामयिक स्मृति/ आत्मरचित स्मृति) -
- इसमें अस्थायी रूप से घटित होने वाली सूचनाएँ संचित होती हैं।
- इन घटनाओं से ये ज्ञात होता है की घटना कब घटी।
- इसे मानसिक नोटबुक भी कहते हैं।
- इसमें विस्मरण तेजी से होता है।
- इसमें स्थिरिता कम होती है।
- इसमें पुनः प्राप्ति देर से होती है।
2- अर्थगत स्मृति (मानसिक शब्दकोष / विश्वकोष/ व्यापक स्मृति/सामान्य स्मृति)-
- इसमें अधिक स्थायी सूचनाएँ रहती हैं।
- इसमें पुनः प्राप्ति संकेत मात्र से हो जाती है।
- इसमें विस्मरण धीमी गति से होता है।
- इसमें संचित सूचनाओं का संबंध क्या? क्यों? कैसे? से होता है।
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