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Learning Theory of Guthrie-गुथरी का सीखने का सिद्धान्त-UGC NET

 Learning Theory of Guthrie -contiguous Conditioning theory - गुथरी का सीखने का सिद्धान्त

अन्य नाम - समीपता अनुबंध सिद्धांत , S R Contiguous Conditioning Theory, उद्दीपक-अनुक्रिया समीपता सिद्धांत  

प्रवर्तक - एडविन रे गुथरी ( अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ) 

गुथरी - थोर्नडाइक व पावलव दोनों के विचारों से प्रभावित थे । 

गुथरी ने पावलव के शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत तथा अपने विचार सामयिक समीपता ( Temporal Contiguity) को मिलकर समीपता अनुबंध सिद्धांत दिया -

शास्त्रीय अनुबंध सिद्धांत(पावलव) + सामयिकता समीपता विचार(गुथरी) = समीपता अनुबंध सिद्धांत

  • गुथरी के अनुसार उद्दीपक अनुक्रिया के बीच का अनुबंध पुनर्बलन द्वारा स्थापित नहीं होता है। 
  • बल्कि उद्दीपक अनुक्रिया के बीच का अनुबंध समीपता के आधार पर स्थापित होता है।
  • इस सिद्धांत का प्रयोग गुथरी ने अपने सहयोगी जे पी होर्टन के साथ मिलकर बिल्लियों पर किया। 
गुथरी - होर्टन प्रयोग-
प्रयोग की सामग्री - 
A- एक शीशे का बना हुआ पहेली बक्सा- जिसके बीच में एक छड़ीनुमा लीवर या pole लगा था, इस लीवर से बिल्ली के किसी भी अंग के छूने पर पहेली बक्से का दरवाजा खुल जाता था और बिल्ली बाहर निकाल कर खाना प्राप्त कर सकती थी। 
B-जानवर - बहुत सी बिल्लियाँ 
C- कैमरा - बिल्लियों के किस अंग के छूने  के कारण दरवाजा खुला इसका रिकार्ड रखने के लिए।
और गुथरी ने ऐसे 800 फोटो लिए और उनका अध्ययन किया। 
निष्कर्ष - अलग- अलग पहेली बक्से में बंद बिल्लियों का अलग -अलग या किसी -किसी का समान अंग भी लीवर से छुआ जिससे दरवाजा खुला और वह बाहर आ गयी बाद में इसी प्रयोग को दोहराया गया तो पता चला कि प्रत्येक बिल्ली ने बाहर निकलने के लिए उसी अंग से लीवर को छूआ ,जिस अंग के छुने से पहली बार दरवाजा खुला था और वो बाहर आयी थी। किसी बिल्ली ने बाहर आने के लिए अपने दूसरे अंग का प्रयोग नही किया। गुथरी ने बिल्लियों के इस प्रकार के व्यवहार को रूढ़िबद्ध व्यवहार का नाम दिया और इसी आधार पर समीपता अनुबंधन  सिद्धान्त प्रस्तुत किया। 
इस प्रयोग के बाद गुथरी ने कुछ प्रमुख सामान्य सिद्धान्त दिये जो इस प्रकार हैं - 
1-समीपता का नियम -उद्दीपक व अनुक्रिया का पास -पास होना।    
2-एकल प्रयास अधिगम नियम- अधिगम के लिए एक सफल प्रयास ही पर्याप्त है।   
3-नवीनता का नियम - प्राणी नयी परिस्थिति में भी पुरानी सफल अनुक्रिया को ही दोहराता है।    
4-गति उत्पन्न उद्दीपक क्रिया- ऐसे उद्दीपक जो शरीर के गतिशील होने पर उत्पन्न होते हैं और अनुबंधन के लिये  उत्तरदायी होते हैं।   
5-कार्यों का अधिगम- किसी कार्य के लिए अनेक क्रियाओं की और किसी कौशल के लिए अनेक कार्यों की आवश्यकता होती है ।  
6-पुनर्बलन की सीखने में कोई भूमिका नहीं लेकिन सीखा हुआ भूलने से बचाने में पुनर्बलन आवश्यक है। 
7-दंड हमेशा अवांछित को छोडकर वांछित क्रिया करवाने के लिए दिया जाए। 
8-विस्मरण तथा विलोपन बाधाओं के कारण होता है। 
9-अभिप्रेरक तथा प्रणोद प्राणी को लक्ष्य प्राप्ति तक क्रियाशील रखते हैं । 
10-दो परिस्थितियों में जितनी अधिक समानता होगी उतनी ही अधिकसंभावना है कि प्राणी एक परिस्थिति में सीखिए हुई प्रतिकृया का प्रयोग दूसरी परिस्ठ्ति में करे।
11-गलत आदत परिष्कार - गुथरी ने बुरीआदतें छुड़ाने के लिए तीन विधियाँ बताई हैं - 
A- देहली विधि - इसमें पहले उद्दीपक की तीव्रता को कम करके प्रस्तुत किया जाता है फिर धीरे धीरे बढ़ाया जाता है। 
B- थकान विधि- इसमें प्राणी को अवांछित अनुक्रिया तब तक लगातार करने को कहा जाता है जब तक वह थक ना जाए और उस अनुक्रिया को बंद ना कर दे। 
C - असंगत उद्दीपक विधि - अवांछित अनुक्रिया उत्पन्न करने वाले उद्दीपकों के साथ अन्य ऐसे उद्दीपकों को प्रस्तुत किया जाता है जो वांछित अनुक्रिया देते हैं ।
अतः Learning Theory of Guthrie -contiguous Conditioning theory
इस सिद्धान्त की देहली विधि , थकान विधि , और असंगत उद्दीपक विधि का प्रयोग छात्रों की  बुरी आदतों को छुड़ाने में शिक्षकों द्वारा किया जाना चाहिए।


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