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vedic period । वैदिक काल । बी एड E 102 । वैदिक काल एवं साहित्य BEd first year

वैदिक काल एवं साहित्य

 2500 BC से 500 BC तक 

वैदिक काल को दो भागों में बाँटा गया है -

क - पूर्व वैदिक काल/ ऋगवैदिक काल  (2500 BC से 1000 BC तक )

ख - उत्तर वैदिक काल (1000 BC से 500 BC तक

क -पूर्व वैदिक काल/ ऋगवैदिक काल  (2500 BC से 1000 BC तक )-

इस काल में ऋग्वेद की रचना की गयी । 

ऋग्वेद के रचनाकार -विश्वामित्र,वामदेव,अत्री,भारद्वाज,वशिष्ठ ,भृगु ,अंगऋषि आदि हैं । 

ऋग्वेद मानव जाति  एवं विश्व की प्रथम पुस्तक मानी जाती है । 

ऋग्वेद में 10 मण्डल , 1028 श्लोक , 10600 मंत्र हैं । 

ऋग्वेद में पहला और 10वां मण्डल बाद में जोड़ा गया । 

ऋग्वेद के 10 वें मण्डल में पुरुष सूक्त है जिसमें चार वर्णों (ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र ) का उल्लेख है ।

ऋग्वेद के मुंडकोपनिषद में गायत्री मंत्र की रचना की गयी है । 

गायत्री मंत्र की रचना विश्वामित्र ने की थी । 

गायत्री मंत्र का उपवेद आयुर्वेद है।

ऋग्वेद के परिवर्ती साहित्य - 

1-- ब्राह्मण ग्रंथ  -

प्रत्येक वेद की गद्य रचना को ब्राह्मण कहते हैं । 

ब्राह्मण ग्रंथ का विषय कर्मकांडीय है अर्थात इसमें कर्मकांडों के विधि-विधान का उल्लेख होता है ।

ब्राह्मण ग्रंथ की भाषा गद्यात्मक है । 

ब्राह्मण में वेदों के सूक्तों की व्याख्या एवं धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन करते हैं । 

ऋग्वेद के प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथ - कौशितकी  और एतरेय ब्राह्मण । 

2 - आरण्यक ग्रंथ - 

अरण्यक का अर्थ होता है वन या जंगल , इस प्रकार आरण्यक का अर्थ हुआ वनों या जंगलों में लिखे जाने और अध्ययन किए जाने  वाले ग्रंथ । 

आरण्यक ग्रन्थों के विषय - आत्मा ,परमात्मा , लोक , परलोक आदि हैं । 

आरण्यक ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग बीच सेतु का काम करते हैं । 

3 - उपनिषद ग्रंथ - 

उपनिषद का अर्थ होता है गुरु के पास बैठकर प्राप्त  किया गया ज्ञान । 

उपनिषद ग्रन्थों के विषय - आत्मा परमात्मा , ब्रह्म ब्रह्मांड , आदि अंत के बारे में चिंतन मनन करना । 

उपनिषद वेदों का सर्वोच्च और अंतिम उद्देश्य बताते हैं । 

उपनिषदों की संख्या 108 है । 

उपनिषदों की भाषा - साहित्यिक संस्कृत । 

उपनिषदों के अनुसार जीवन का लक्ष्य - मोक्ष प्राप्ति । 

उपनिषदों के अनुसार आत्मा और परमात्मा एक ही है । 

उपनिषद पुनर्जन्म की बात करता है , पुनर्जन्म के बारे में सर्वप्रथम वृहदारण्यक उपनिषद में लिखा गया है । 

प्रमुख उपनिषद - ईश , काठ, केन ,प्रश्न, मुंडक , मांडूक्य , तैतरीय, एतरेय , छ्ंदोग्य , वृहदारण्यक आदि । 

4  - वेदान्त - 

वेद ,ब्राह्मण,आरण्यक,एवं उपनिषद का सार तत्व वेदान्त कहलाता है । 

वेदान्त और उनके प्रवर्तक -

अद्वैत वेदान्त - शंकरचार्य 

विशिष्टद्वैत वेदान्त  - रामानुजाचार्य 

द्वैत वेदान्त - माध्वाचार्य व निंबार्क 

शैव विशिष्टा द्वैत वेदान्त  - शृकंठ 

वीर शैव विशिष्टा द्वैत वेदान्त - श्रीपति 

शुद्धाद्वैत वेदान्त - बल्लभाचार्य 

5 - वेदांग - (6)-

 वेदों का अर्थ समझने और सूक्तियों का सही उच्चारण करने के लिए वेदांग की रचना की गयी । 

वेदांगों के प्रकार -

i- शिक्षा - उच्चारण 

ii - कल्प - धार्मिक अनुष्ठान 

iii- व्याकरण - विश्लेषण 

iv - निरुक्त - व्युत्पत्ति 

v - छंद - छंदशास्त्र 

vi - ज्योतिष - खगोलशास्त्र 

6-  षडदर्शन -

i- सांख्य 

ii- योग 

iii- न्याय 

iv- वैशेषिक 

v- मीमांसा ( पूर्व व उत्तर ) 

vi- वेदान्त 

 7- पुराण (18)-

i- मतस्य पुराण 

ii-मार्कन्डेय पुराण 

iii-भविष्य पुराण 

iv-भागवत पुराण 

v-ब्रह्मांड पुराण 

vi- ब्रह्मवैवर्त पुराण 

vii-ब्राहम पुराण 

viii- वामन पुराण 

ix - वराह पुराण 

x-विष्णु पुराण 

xi- वायु पुराण 

xii-अग्नि पुराण 

xiii-पदम पुराण 

xiv- लिंग पुराण 

xv-गरुण  पुराण 

xvi-कूर्म  पुराण 

xvii-स्कन्ध पुराण

xviii- नारद पुराण ।  

ध्यान दें - वादरायण व्यास ने इन समस्त ग्रन्थों के सार तत्वों को एक सूत्र के रूप में प्रस्तुत किया , इनके द्वारा रचित ग्रंथ का नाम ब्रहमसूत्र है और यही ब्रह्म सूत्र वेदान्त दर्शन का आदि ग्रंथ है ।

ख - उत्तर वैदिक काल - (1000 BC - 500 BC )- 

उत्तर वैदिक काल में  लिखे गए ग्रंथ इस प्रकार हैं - 

1- यजुर्वेद ( कर्मकांडीय ग्रंथ ) - 

इसमें यज्ञ के समय पालन किए जाने वाले नियमों का उल्लेख है ।  इसके दो भाग हैं - 

(i) कृष्ण यजुर्वेद ( ये गद्य में लिखा गया है )

(ii) शुक्ल यजुर्वेद (ये पद्य में लिखा गया है ) 

यजुर्वेद का  उपवेद - धनुर्वेद (इसमें युद्धकला का वर्णन है )

यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ - तैतरीय व शतपथ 

2- सामवेद - 

इसमें गायन, वादन  व संगीत का वर्णन है। 

संगीत की उत्पत्ति सामवेद से हुई है । 

सामवेद का उपवेद - गांधर्व वेद 

सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ - पंचविश व जैमनीय 

3- अथर्व वेद - इसमें जादू ,टोना,रोग निवारण ,अंधविश्वास ,विवाह व विभिन्न कलाओं का वर्णन है -

 अथर्व वेद का उपवेद - शिल्प वेद (भवन निर्माण की जानकारी)

अथर्व वेद का ब्राह्मण ग्रंथ - गोपथ है ।      

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